Sunday 16 October 2011

लौ उम्मीदों की जलाएँ, चलो दिवाली आई है (दीवाली विशेष)

लौ उम्मीदों की जलाएँ, चलो दिवाली आई है।
नई कोई राह बनाएँ, चलो दिवाली आई है॥
               मुफ़लिसी, तंगदस्ती ने निवाला मुंह का छीना है,
               भूखे-प्यासों को खिलाएँ, चलो दिवाली आई है॥
झोपड़ी में ग़रीबों की रौशनी कब से रूठी है,
नूर उन तक भी पहुचाएँ, चलो दिवाली आई है॥
              भुलाकर सब गिले शिकवे, हटाके नफ़रतें दिल की,
              सभी फिर एक हो जाएँ, चलो दिवाली आई है॥
थके, हारे, परेशां क्यूँ दिखेँ दुनिया की नज़रों में,
उम्मीदों की ग़ज़ल गाएँ, चलो दिवाली आई है॥
               छिपे है भेड़िये कुछ देश मे भेड़ों की खालों में,
               परदा चेहरे से हटाएँ, चलो दिवाली आई है॥
अमावस के अंधेरे दूर करती जैसे दिवाली,
सियाही दिल की मिटाएँ, चलो दिवाली आई है॥
             करें कुछ नेक आओ दोस्तों दुनिया के मेले में,
             किसी गिरते को उठाएँ, चलो दिवाली आई है॥
सहर होती नज़र आती नहीं अंधेरी रातों की,
जरा “सूरज” को बुलाएँ, चलो दिवाली आई है॥
                                 डॉ॰ सूर्या बाली “सूरज”

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