Wednesday 12 October 2011

गुजारे हैं, जो पल संग में, तुम्हारे, याद आते हैं।

गुजारे हैं, जो पल संग में, तुम्हारे, याद आते हैं।
वो रातें, चाँदनी, झिलमिल सितारे याद आते हैं॥


                   तुझे मैं भूल सकता हूँ भला कैसे मेरी जाना,
                   तुम्हारे साथ के किस्से वो सारे याद आतें हैं॥


तुम्हारी झील सी आँखें, किसी साक़ी का पैमाना,
उन्ही आंखो से पीने के नज़ारे याद आते हैं॥


               भरी महफिल में सबसे छुप के मुझसे गुफ़्तगू करना,
               वो मुझको तेरी आंखो के इशारे याद आते हैं।


तुम्हारी बेवफ़ाई मुझको अक्सर याद आती है,
तुम्हें भी क्या मोहब्बत के वो मारे याद आते हैं॥


                  अकेले बैठ के राहें तेरी तकना, तेरा आना,
                  वो महकी शाम, दरिया के किनारे याद आते हैं।


अंधेरे में मुझे जब भी नज़र आता न था “सूरज”,
दिये थे तुम जो बाहों के सहारे याद आते हैं॥


                                       डॉ॰ सूर्या बाली “सूरज”

No comments:

Post a Comment