Monday 17 October 2011

क्या हुआ है मुझे आजकल ये, क्यूँ जमीं पर उतरता नहीं हूँ

क्या हुआ है मुझे आजकल ये, क्यूँ जमीं पर उतरता नहीं हूँ॥ 
बादलों सा फिरूँ आसमां मे, क्यूँ कहीं पर ठहरता नहीं हूँ॥


उसको लगता था जी न सकूँगा, उसके बिन भी मैं रह न सकूँगा॥
अब जहां पे ठिकाना है उसका, उस गली से गुजरता नहीं हूँ॥


कोई नेता हो चाहे मिनिस्टर, कोई मुंसिफ़ हो चाहे कमिश्नर,
जो मुझे भूल जाते है अक्सर, मैं उन्हे याद करता नहीं हूँ ॥


चाहे कितना भी मुझको सता ले, और जी भर के मुझको रुला ले,
पत्थरों की तरह हो गया हूँ, टूट कर अब बिखरता नहीं हूँ॥


बज़्म मे कल हमारी वो आया, जाम नज़रों से कुछ यूं पिलाया,
बेखुदी छाई अब तक उसी की, उस नशे से उबरता नहीं हूँ॥


छोड़ कर तू गया था जहां पे, आज भी मैं खड़ा हूँ वहीं पे,
कह दिया जान दे दी तो दे दी, मैं जुबां से मुकरता नहीं हूँ॥


अपनों ने ही मुझे है हराया, गैर तो हर वक़्त मात खाया,
खौफ़ खाता हूँ अपनों से “सूरज”, ग़ैर से मै तो डरता नहीं हूँ॥


                                               डॉ॰ सूर्या बाली “सूरज”

Sunday 16 October 2011

लौ उम्मीदों की जलाएँ, चलो दिवाली आई है (दीवाली विशेष)

लौ उम्मीदों की जलाएँ, चलो दिवाली आई है।
नई कोई राह बनाएँ, चलो दिवाली आई है॥
               मुफ़लिसी, तंगदस्ती ने निवाला मुंह का छीना है,
               भूखे-प्यासों को खिलाएँ, चलो दिवाली आई है॥
झोपड़ी में ग़रीबों की रौशनी कब से रूठी है,
नूर उन तक भी पहुचाएँ, चलो दिवाली आई है॥
              भुलाकर सब गिले शिकवे, हटाके नफ़रतें दिल की,
              सभी फिर एक हो जाएँ, चलो दिवाली आई है॥
थके, हारे, परेशां क्यूँ दिखेँ दुनिया की नज़रों में,
उम्मीदों की ग़ज़ल गाएँ, चलो दिवाली आई है॥
               छिपे है भेड़िये कुछ देश मे भेड़ों की खालों में,
               परदा चेहरे से हटाएँ, चलो दिवाली आई है॥
अमावस के अंधेरे दूर करती जैसे दिवाली,
सियाही दिल की मिटाएँ, चलो दिवाली आई है॥
             करें कुछ नेक आओ दोस्तों दुनिया के मेले में,
             किसी गिरते को उठाएँ, चलो दिवाली आई है॥
सहर होती नज़र आती नहीं अंधेरी रातों की,
जरा “सूरज” को बुलाएँ, चलो दिवाली आई है॥
                                 डॉ॰ सूर्या बाली “सूरज”

Saturday 15 October 2011

सभी से राज़ दिल के खोलने में देर लगती है

सभी से राज़ दिल के खोलने में देर लगती है।
नए इंसान को पहचानने में देर लगती है ॥


             बड़ा धोका दिया उसने बढ़ा के हाथ धीरे से,
            किसी का हाथ अब तो थामने में देर लगती है॥


बड़ा मुश्किल रक़ीबों को हबीबों से अलग करना,
पराया और अपना आँकने मे देर लगती है॥


          वो इतनी बार बोला झूठ कि एतबार खो बैठा,
          सही भी बात अब तो, मानने में देर लगती है॥


पिलाएगी तुझे “सूरज” या फिर तड़पा के मारेगी,
इरादे साक़ी के तो जानने में देर लगती है॥


                                       डॉ॰ सूर्या बाली "सूरज"

Wednesday 12 October 2011

गुजारे हैं, जो पल संग में, तुम्हारे, याद आते हैं।

गुजारे हैं, जो पल संग में, तुम्हारे, याद आते हैं।
वो रातें, चाँदनी, झिलमिल सितारे याद आते हैं॥


                   तुझे मैं भूल सकता हूँ भला कैसे मेरी जाना,
                   तुम्हारे साथ के किस्से वो सारे याद आतें हैं॥


तुम्हारी झील सी आँखें, किसी साक़ी का पैमाना,
उन्ही आंखो से पीने के नज़ारे याद आते हैं॥


               भरी महफिल में सबसे छुप के मुझसे गुफ़्तगू करना,
               वो मुझको तेरी आंखो के इशारे याद आते हैं।


तुम्हारी बेवफ़ाई मुझको अक्सर याद आती है,
तुम्हें भी क्या मोहब्बत के वो मारे याद आते हैं॥


                  अकेले बैठ के राहें तेरी तकना, तेरा आना,
                  वो महकी शाम, दरिया के किनारे याद आते हैं।


अंधेरे में मुझे जब भी नज़र आता न था “सूरज”,
दिये थे तुम जो बाहों के सहारे याद आते हैं॥


                                       डॉ॰ सूर्या बाली “सूरज”